कलयुग में शक्ति का अवतार जीण माता जीन माता (jeen mata) के बारे में अभी तक कोई पुख्ता जानकारी मौजूद नही है फ़िर भी कहते है की माता का मन्दिर कम से कम 1000 साल पुराना है। लोक कथाओं के अनुसार जीण माता का जन्मअवतार चुरू जिले के घांघू गाँव में हुआ था। जीण माता के बड़े भाई का नाम हर्ष था । माता जीण को शक्ति का अवतार माना गया है और हर्ष को भगवन शिव का अवतार माना गया है॥ कहते है की दोनों बहन भाइयो में बहुत स्नेह था। लेकिन किसी बात पर दोनों मनमुटाव हो गया। तब जीण माता यहाँ आकर तपस्या करने लगी पीछे पीछे हर्षनाथ भी अपनी लाडली बहन को मनाने के लिए आए लेकिन जीण माता जीद्द करने लगी साथ जाने से मना कर दिया । हर्षनाथ का मन बहुत उदास हो गया और वे भी वहां से कुछ दूर जाकर वहां पर तपस्या करने लगे। दोनों भाई बहन के बीच हुई बातचीत का सुलभ वर्णन आज भी राजस्थान के लोक गीतों में मिलता है॥ भगवन हर्षनाथ का भव्य मन्दिर आज भी राजस्थान की अरावली पर्वतमाला में स्थित है। कहते दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने एक बार हर्ष पर्वत पर आक्रमण किया और पुरे मंदिरों , गुफाओं, और अनेक भवनों को क्षत विक्षत कर दिया। फ़
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Showing posts from March, 2017
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हेलो म्हारो साम्हलो नी रुनीजा रा राजा भारत की इस पवित्र धरती पर समय समय पर अनेक संतों,महात्माओं,वीरों व सत्पुरुषों ने जन्म लिया है | युग की आवश्कतानुसार उन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के बल से, दुखों से त्रस्त मानवता को दुखों से मुक्ति दिला जीने की सही राह दिखाई | १५ वी. शताब्दी के आरम्भ में भारत में लुट खसोट,छुआछुत,हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थितिया बड़ी अराजक बनी हुई थी | ऐसे विकट समय में पश्चिमी राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तोमर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर चेत्र शुक्ला पंचमी वि.स. १४०९ को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए जिन्होंने लोक में व्याप्त अत्याचार,वैर-द्वेष,छुआछुत का विरोध कर अछुतोद्वार का सफल आन्दोलन चलाया | हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव ने अपने अल्प जीवन के तेंतीस वर्षों में वह कार्य कर दिखाया जो सैकडो वर्षों में भी होना सम्भव नही था | सभी प्रकार के भेद-भाव को मिटाने एवं सभी वर्गों में एकता स्थापित करने की पुनीत प्रेरणा के कारण बाबा रामदेव जहाँ हिन्दुओ के देव है तो मुस्लिम भाईयों के लिए रामसा
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जहाँ दीपक से काजल नहीं,केसर बनती है : आई माता जोधपुर के बिलाडा में नवदुर्गा अवतार श्री आई माता जी का मंदिर हैं। यह पश्चिमी राजस्थान एक का सुप्रसिद्ध मंदिर है जहाँ पूरे भारत से लोग दर्शनों के लिए आते हैं। बिलाड़ा स्थित यही वो मंदिर है जहाँ विश्व का अनोखा एवं अद्वितीय चमत्कार “अखंड केसर ज्योत” है। माता सिरवी समाज की आराध्य देवी है. वैसे तो इस मंदिर का एक-एक भाग दर्शनीय है, फिर भी समझने की दृष्टि से विवरण प्रस्तुत है- अखंड केसर ज्योत- यह “अखंड केसर ज्योत” पिछले 500 से भी अधिक वर्षों से लगातार जल रही है और इसकी लौ से काजल के स्थान पर केसर प्रकट होता है जो कि मंदिर में माताजी की उपस्थिति का अकाट्य प्रमाण है। आई माता जी की झोपड़ी- मंदिर परिसर के प्रथम तल पर आई माताजी की झोपड़ी को संरक्षित किया गया है। यह वही झोपड़ी है जहाँ आई माताजी निवास करते थे। चित्र प्रदर्शनी- मंदिर के एक भाग में आई माताजी के संपूर्ण जीवन चरित्र को दर्शाने वाली भव्य प्रदर्शनी है। यहाँ आई माताजी के जीवन वृत्त एवं विभिन्न घटनाओं को अनेक चित्रों के माध्यम से समझाया गया हैं। प्रदर्शनी के अंतिम छोर पर परम भक्त दीवान रो
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ऐसा मंदिर, जहाँ बाइक पूजी जाती है राजस्थान में लोक देवताओं की कमी नहीं. यहाँ पूर्वजों की जिस तरह से पूजा होती है, उसका कहीं और कोई उदहारण नहीं. नाग की पूजा भी यहाँ देवता के रूप में होती है. लेकिन मोटर साइकल की पूजा शायद ही भारत में अन्य किसी स्थान पर की जाती हो. जोधपुर- पाली राष्ट्रीय राजमार्ग पर पाली से लगभग बीस किमी दूर एक स्थान है ओम बन्ना का थान (देवरा). यहाँ बुलेट बाइक की पूजा की जाती है. मुख्य हाइवे के पास ही स्थित यह स्थान हाल ही के दिनों में बहुत चर्चित हुआ है. सड़क के किनारे जंगल में लगभग 20-25 प्रसाद व पूजा अर्चना के सामान से सजी दुकाने दिखाई देती है और साथ ही नजर आता है भीड़ से घिरा एक चबूतरा जिस पर ओम बन्ना की एक बड़ी सी फोटो और अखंड जलती ज्योत। चबूतरे के पास ही नजर आती है एक फूल मालाओं से लदी बुलेट मोटर साईकिल। यह वही स्थान है और वही मोटर साईकिल. ओम बना अर्थात ओम सिंह राठौड़ (om banna) पाली शहर के पास ही स्थित चोटिला गांव के ठाकुर जोग सिंह जी राठौड़ के पुत्र थे, जिनका इसी स्थान पर अपनी इसी बुलेट मोटर साईकिल पर जाते हुए 1988 में एक दुर्घटना में निधन हो गया था।
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राठौड वंश की कुल देवी माँ नागणेची जी का इतिहास एक बार बचपन में राव धुहड जी ननिहाल गए , तो वहां उन्होने अपने मामा का बहुत बडा पेट देखा । बेडोल पेट देखकर वे अपनी हँसी रोक नही पाएं । और जोर जोर से हस पडे । तब उनके मामा को गुस्सा आ गया और उन्होने राव धुहडजी से कहा की सुन भांनजे । तुम तो मेरा बडा पेट देखकर हँस रहे हो किन्तु तुम्हारे परिवार को बिना कुलदेवी देखकर सारी दुनिया हंसती है तुम्हारे दादाजी तो कुलदेवी की मूर्ति भी साथ लेकर नही आ सके तभी तो तुम्हारा कही स्थाई ठोड-ठिकाना नही बन पा रहा है मामा के ये कडवे बोल राव धुहडजी के ह्रदय में चुभ गये उन्होने उसी समय मन ही मन निश्चय किया की मैं अपनी कूलदेवी की मूर्ति अवश्य लाऊगां । और वे अपने पिताजी राव आस्थानजी के पास खेड लोट आए किन्तु बाल धुहडजी को यह पता नही था कि कुलदेवी कौन है उनकी मूर्ति कहा है ।और वह केसे लाई जा सकती है । आखिर कार उन्होने सोचा की क्यो न तपस्या करके देवी को प्रसन्न करूं । वे प्रगट हो कर मुझे सब कुछ बता देगी । और एक दिन बालक राव धुहडजी चुपचाप घर से निकल गये ।और जंगल मे जा पहुंचे । वहा अन्नजल त्याग कर तपस्या करने
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रानी भटियानी मंदिर जसोल मालानी क्षेत्र सदैव ही सती, संत और शूरमाओं की खान रहा है| वीरों ने जहाँ इस भूमि को अपने रक्त से सींचा वहीं सतियों और संतों ने इसे अपनी भक्ति से पावन किया| मालानी क्षेत्र (वर्तमान बाड़मेर जिला) में जसोल ठिकाने पर रावल महेचों का शासन रहा है। एक समय में जसोल जागीर पर रावल कल्याणमल शासन करते थे। रावल कल्याणमल ने दो विवाह किए। पहला विवाह रानी देवड़ी से हुआ और दूसरा स्वरूपकंवर भटियाणी से जो आगे चल कर राणी भटियाणी नाम से प्रसिद्ध हुई, जन-जन के आस्था की केन्द्र बनी और एक लोक देवी के रूप में पूजी जाने लगी। जैसलमेर जिले के गाँव जोगीदास में ठाकुर जोगराज सिंह भाटी के यहां वि.सं. 1725 में पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम स्वरूप कंवर रखा गया। बालिका बचपन से ही बड़ी रूपवती और गुणवान थी। विवाह योग्य होने पर स्वरूप कंवर का विवाह जसोल । रावल कल्याणमल से होना तय हुआ। कल्याणमल ने अपना पहला विवाह तो देवड़ी से किया था जब उनसे कोई संतान न हुई तो दूसरा विवाह स्वरूप कंवर भटियाणी से किया। स्त्रियों में सोतिया डाह की भावना जन्म जात ही होती है। बड़ी रानी देवड़ी तो स्वरूप कंवर से प्रा
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*_प्रभू कहते हैं_* *अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना का* *तुरन्त जबाव दे देता हूँ* *तो मैं तुम्हारे विश्वास को* *और पक्का करता हूँ ।* 💐💐 *अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना* *का तुरन्त जबाव नहीं देता हूँ* *तो मैं तुम्हारे धैर्य की* *परीक्षा लेता हूँ...* 🌷🌷 *अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना का* *बिल्कुल भी जवाब नही* *देता हूँ तो.....* *मैने तुम्हारे लिये कुछ और* *ही अच्छा सोच* *रखा है |* 🙏🙏 🌹राधे राधे जी 🌹
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9/3/2017 🌹जब शिव का दिल डोल गया🌹 शिव को अक्सर एक शांत और संयमी योगी के रूप में दिखाया जाता है। परंतु हम शिव के बारे में जो भी कहें, इसके ठीक उल्टा भी उतना ही सही है। यह शांत योगी एक समय में एक भावुक प्रेमी भी बन गया था। पुण्याक्षी एक अत्यंत ज्ञानी स्त्री और भविष्यवक्ताो थी, जो भारत के दक्षिणी सिरे पर रहती थीं। उनमें शिव को पाने की लालसा पैदा हो गई या कहें कि उन्हें शिव से प्रेम हो गया और वह उनकी पत्नी बनकर उनका हाथ थामना चाहती थीं। उन्होंने फैसला किया कि वह शिव के अलावा किसी और से विवाह नहीं करेंगी। इसलिए, पुण्याक्षी ने शिव का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने आप को उनके योग्य और उपयुक्त बनाना शुरू कर दिया। वह अपने जीवन का प्रत्येक क्षण पूरी तरह उनके ध्यान में बितातीं, उनकी भक्ति ने सभी सीमाएं पार कर लीं और उनकी तपस्या पागलपन की हद तक पहुंच गई। उनके प्रेम की तीव्रता को देखते हुए, शिव प्रेम और करूणा से विचलित हो उठे। उनके हृदय में भी पुण्याक्षी से विवाह करने की इच्छा जागी। परंतु जिस समाज में पुण्याक्षी रहती थी, उन लोगों को चिंता होने लगी। उन्हें लगा कि विवाह के बाद पुण्याक्षी
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अक्सर ऐसा कहा जाता है, प्रेम आत्मा का दर्पण होता है... प्रेम की ताकत के आगे परम पिता परमेश्वर भी बेबस हो जाते है अर्थात प्रेम में वह शक्ति है, जिससे जीव भगवद स्वरुप का साक्षात्कार कर सकता है... प्रभु से प्रेम करने वाला भक्त संसार के किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होता... क्योंकि वह अपना तन-मन प्रभु को समर्पित कर चुका होता है... मेरा तो ऐसा भी मानना है कि, प्रेम का भाव छिपाने से कतई छिपता नहीं है... प्रेम जिस हृदय में प्रकट होकर उमड़ता है उस को छिपाना उस हृदय के वश में भी नहीं होता है... और वह इसे छिपा भी नहीं पाता है... यदि वह मुख से प्रेम-प्रीत की कोई बात न बोल पाए तो उसके नेत्रों से प्रेम के पवित्र अश्रुओं की धारा निकल पड़ती है अर्थात् हृदय के प्रेम की बात नेत्रों से स्वत: ही प्रकट हो जाती है... और प्रभु मिलन को तरसता वो हृदय प्रेमाश्रुओं के साथ इस प्रकार अपने ईष्टदेव से अनुनय विनय करने लगता है...