जय माजिसा री माँ का आशीर्वाद आप सभी पर बना रहे हमारी यही कामना है
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रानी भटियानी मंदिर जसोल मालानी क्षेत्र सदैव ही सती, संत और शूरमाओं की खान रहा है| वीरों ने जहाँ इस भूमि को अपने रक्त से सींचा वहीं सतियों और संतों ने इसे अपनी भक्ति से पावन किया| मालानी क्षेत्र (वर्तमान बाड़मेर जिला) में जसोल ठिकाने पर रावल महेचों का शासन रहा है। एक समय में जसोल जागीर पर रावल कल्याणमल शासन करते थे। रावल कल्याणमल ने दो विवाह किए। पहला विवाह रानी देवड़ी से हुआ और दूसरा स्वरूपकंवर भटियाणी से जो आगे चल कर राणी भटियाणी नाम से प्रसिद्ध हुई, जन-जन के आस्था की केन्द्र बनी और एक लोक देवी के रूप में पूजी जाने लगी। जैसलमेर जिले के गाँव जोगीदास में ठाकुर जोगराज सिंह भाटी के यहां वि.सं. 1725 में पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम स्वरूप कंवर रखा गया। बालिका बचपन से ही बड़ी रूपवती और गुणवान थी। विवाह योग्य होने पर स्वरूप कंवर का विवाह जसोल । रावल कल्याणमल से होना तय हुआ। कल्याणमल ने अपना पहला विवाह तो देवड़ी से किया था जब उनसे कोई संतान न हुई तो दूसरा विवाह स्वरूप कंवर भटियाणी से किया। स्त्रियों में सोतिया डाह की भावना जन्म जात ही होती है। बड़ी रानी देवड़ी तो स्वरूप कंवर से प्रा
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*_प्रभू कहते हैं_* *अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना का* *तुरन्त जबाव दे देता हूँ* *तो मैं तुम्हारे विश्वास को* *और पक्का करता हूँ ।* 💐💐 *अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना* *का तुरन्त जबाव नहीं देता हूँ* *तो मैं तुम्हारे धैर्य की* *परीक्षा लेता हूँ...* 🌷🌷 *अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना का* *बिल्कुल भी जवाब नही* *देता हूँ तो.....* *मैने तुम्हारे लिये कुछ और* *ही अच्छा सोच* *रखा है |* 🙏🙏 🌹राधे राधे जी 🌹
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9/3/2017 🌹जब शिव का दिल डोल गया🌹 शिव को अक्सर एक शांत और संयमी योगी के रूप में दिखाया जाता है। परंतु हम शिव के बारे में जो भी कहें, इसके ठीक उल्टा भी उतना ही सही है। यह शांत योगी एक समय में एक भावुक प्रेमी भी बन गया था। पुण्याक्षी एक अत्यंत ज्ञानी स्त्री और भविष्यवक्ताो थी, जो भारत के दक्षिणी सिरे पर रहती थीं। उनमें शिव को पाने की लालसा पैदा हो गई या कहें कि उन्हें शिव से प्रेम हो गया और वह उनकी पत्नी बनकर उनका हाथ थामना चाहती थीं। उन्होंने फैसला किया कि वह शिव के अलावा किसी और से विवाह नहीं करेंगी। इसलिए, पुण्याक्षी ने शिव का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने आप को उनके योग्य और उपयुक्त बनाना शुरू कर दिया। वह अपने जीवन का प्रत्येक क्षण पूरी तरह उनके ध्यान में बितातीं, उनकी भक्ति ने सभी सीमाएं पार कर लीं और उनकी तपस्या पागलपन की हद तक पहुंच गई। उनके प्रेम की तीव्रता को देखते हुए, शिव प्रेम और करूणा से विचलित हो उठे। उनके हृदय में भी पुण्याक्षी से विवाह करने की इच्छा जागी। परंतु जिस समाज में पुण्याक्षी रहती थी, उन लोगों को चिंता होने लगी। उन्हें लगा कि विवाह के बाद पुण्याक्षी
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अक्सर ऐसा कहा जाता है, प्रेम आत्मा का दर्पण होता है... प्रेम की ताकत के आगे परम पिता परमेश्वर भी बेबस हो जाते है अर्थात प्रेम में वह शक्ति है, जिससे जीव भगवद स्वरुप का साक्षात्कार कर सकता है... प्रभु से प्रेम करने वाला भक्त संसार के किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होता... क्योंकि वह अपना तन-मन प्रभु को समर्पित कर चुका होता है... मेरा तो ऐसा भी मानना है कि, प्रेम का भाव छिपाने से कतई छिपता नहीं है... प्रेम जिस हृदय में प्रकट होकर उमड़ता है उस को छिपाना उस हृदय के वश में भी नहीं होता है... और वह इसे छिपा भी नहीं पाता है... यदि वह मुख से प्रेम-प्रीत की कोई बात न बोल पाए तो उसके नेत्रों से प्रेम के पवित्र अश्रुओं की धारा निकल पड़ती है अर्थात् हृदय के प्रेम की बात नेत्रों से स्वत: ही प्रकट हो जाती है... और प्रभु मिलन को तरसता वो हृदय प्रेमाश्रुओं के साथ इस प्रकार अपने ईष्टदेव से अनुनय विनय करने लगता है...